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अहसासों की आग दरम्यान ना रही

जज्बात मन के
जज्बात मन के
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युही बैठे बैठे इक ख़याल आया है
क्यों जिंदगी अब उतनी आसान ना रही

इंसान की  इंसान से पहचान ना रही

रिश्तों में आज जैसे अब जान ना रही

कभी एक ही कमरे में सब साथ रहते थे
आज एक घर में रहने में भी शान ना रही
टुकड़ों की जिंदगी में सब टुकड़ों में बट गया
दिलो को तोड़ने में भी अब हानि ना रही
एक पल में टूट जाते है बरसो के बने रिश्ते
अब …अहसासों की वो आग दरम्यान ना रही

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