जज्बात मन के
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क्या बात होती अगर हर बात कागज़ पर लिखी जा पाती …
हर दर्द हर ख़ुशी कागज़ पर नजर आती
आँखों के आंसू भी नाचतें कागज़ पर
होठो की कालिया भी कागज़ पर मुस्कराती
जुदाई की हो शाम य मिलन की हो बेला
तन्हाइया किसी की हो य कही का हो मेला
हर शय जिंदगी की कागज़ पर उतर आती
प्रेमी का प्रेम भी कागज़ पे होता
दुश्मन का तीर भी कागज़ पे चला करता
हर किसी की जिंदगी कागज़ पर संवर जाती
माँ-बाप का दुलार कागज़ पे मिल करता
फिर बच्चे की किलकारी भी कागज़ पे मिल करती
भाई की कलाई कागज़ पे बनी होती
फिर बहना की राखी भी कागज पे नजर आती
साथ बैठ के हम तुम कागज़ पे मुस्कराते
अगर दोस्तों की दोस्ती भी कागज़ पे हुआ करती
दर्द से खभी दिल ये बोझिल न होता
सुख-दुःख की छाया भी बस कागज़ पे हुआ करती
क्या बात होती अगर …
हर बात कागज़ पर लिखी जा पाती
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