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बदलती प्राथमिकताएं

जज्बात मन के
जज्बात मन के
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ये परिवर्तन का युग है सब जानते है और सबकी तरह मै भी जानती हु ..अच्छा है नित नए अविष्कार हो रहे है ,सुविधाए बदल रही है |कल का किसान आज कंपनी चलाता है ,कल की माँ आज पिता कदमो से कदम मिलाकर घर चलाने उसकी मदद कर रही है ,जो काम 10 साल के बच्चे के लिए मुश्किल था आज 6-7 साल के बच्चे के लिए वो बच्चो जैसी बात बन जाती है | एक नए कपडे नए खिलौने को पहले महीने की सैलरी का इन्तजार रहा करता था  आज क्रेडिट कार्ड्स ने ये मुश्किल भी आसान कर दी है | अगर गौर से देखे तो आज की जिंदगी सुविधाओं से परिपूर्ण है , जब जो चाहे करने की आजादी है , जहाँ चाहे वहाँ जाने की आजादी है , शायद इसे ही सफल जीवन कहते है की जिसमे कही भी असफलता ना हो …शायद हम में से ज्यादातर लोग इस बात से सहमत हो मगर क्या ये सफल जिंदगी खुश भी है? ये परिवर्तन हमारी जिंदगी, परिवार , और समाज के लिए कितना अच्छा है ? है भी या नही ? मै भी आप में से ही हूँ जो कभी कभी यु ही बैठे बैठे ऐसे कई प्रश्नों के जवाब ढूँढती रहती हूँ ..शायाद कही मिल जाये|
पहले जब पिता की तनख्वाह थोड़ी होती थी तब भी वो यही कोशिश करता था की वो अपने परिवार के लिए ज्यादा से ज्यादा कर सके  और आज ज्यादा पाने वालो की भी वह हालत है, कल भी माँ-बाप यही कहते थे की मेरा बच्चा कुछ बन जाये आज भी यही कहते है कि अपने बच्चो को कुछ बनाना है  बस अंतर यही रह गया है कि कल असुविधाओं में रहने वाले भी यही कहते थे आज हर सुविधा उठाने वाले भी यही कहते है | जबकि पहले इंसान घर में या बाहर काम करके भी थोड़े सुकून से रहता था आज हरवक्त मारा-मारी है भागम-भाग है, competetion जो बढ़ गया है |
घर संभालने वाली घरनी जब बाहर रहे तो घर तो भूतो का डेरा हो ही जायेगा , मै नारी के विरोध में नही हूँ बस उसकी उपस्थिति और अनुपस्थिती  को अपनी समझ के अनुसार समझाने का प्रयत्न कर रही हूँ | दोस्तों आप भी देख रहे होंगे कि जिस घर में औरत अपना समय नही दे पाती वहा तरह तरह की परेशानिया उत्पन्न हो जाती है , पति पत्नी के झगड़े और बच्चो में बढ़ते अकेलेपन और बेपरवाही  की मुख्य वजह माँ और पत्नी का समय पर समय ना दे पाना होता है ,समाज में भी बढ़ती पारिवारिक घटनाओं के लिए मेरी समझ से कुछ हद तक ये  जिम्मेदार है परन्तु वो भी क्या करें घर तो चलाना है , महंगाई के इस दौर में जब किसी की भी सैलरी पूरी नही पड़ती अगर वो निकल कर हाथ ना बटाए तो गुजारा ना हो | और फिर औरत के आत्मसम्मान के लिए भी आज उसका कामकाजी होना अनिवार्य हो गया है तो क्या कोई और राह नही है जिसमे इन सभी मुश्किलों का हल हो, घर का खर्च भी चल जाये , नारी का अपना सम्मान भी बना रहे और वो अपने बच्चे  और पति को समय भी दे सके ? शायद है या शायद नही …ये हमारे अपने नजरिये पर निर्भर करता है और हमारी प्राथमिकताओं पर भी | हमारी प्राथमिकता क्या है ये भी हमारा ही नजरिया बतलाता है |
दोस्तों मेरा मानना है की हमारी लाइफ में होने वाली इन सभी बातो के लिए केवल एक चीज सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ,और वो है हमारी खुद के मन कि इच्छा, लालच, और अधिक पाने कि चाहत , कम में संतोष न कर पाना | मेरी ये बाते कभी कभी मुझे भी कुछ ज्यादा ही आदर्शवादी लगती है लेकिन दोस्तों एक बात तो सच है कि लाइफ में होने वाली 75% से भी ज्यादा परेसानिया अपनी चाहत , इच्छाओं  और लालच को कम करके किया जा सकता है | भ्हाग दौड़ कि इस जिंदगी में सब कुछ भागता ही जा रहा है, समय तो अपने ही तरह चल रहा है लेकिन कम पड़ जाता है , पैसे कमाने या जरूरते पूरी करने के लिए ही नही ….अपने अपनों, बच्चो ,पति / पत्नी के लिए भी , अपने रिश्तों के लिए भी समय निकालना उतना ही जरुरी है …

ये परिवर्तन का युग है सब जानते है और सबकी तरह मै भी जानती हु ..अच्छा है नित नए अविष्कार हो रहे है ,सुविधाए बदल रही है |कल का किसान आज कंपनी चलाता है ,कल की माँ आज पिता कदमो से कदम मिलाकर घर चलाने में उसकी मदद कर रही है ,जो काम 10 साल के बच्चे के लिए मुश्किल था आज 6-7 साल के बच्चे के लिए वो बच्चो जैसी बात बन जाती है | एक नए कपडे नए खिलौने को पहले महीने की सैलरी का इन्तजार रहा करता था  आज क्रेडिट कार्ड्स ने ये मुश्किल भी आसान कर दी है | अगर गौर से देखे तो आज की जिंदगी सुविधाओं से परिपूर्ण है , जब जो चाहे करने की आजादी है , जहाँ चाहे वहाँ जाने की आजादी है , शायद इसे ही सफल जीवन कहते है की जिसमे कही भी असफलता ना हो …शायद हम में से ज्यादातर लोग इस बात से सहमत हो मगर क्या ये सफल जिंदगी खुश भी है? ये परिवर्तन हमारी जिंदगी, परिवार , और समाज के लिए कितना अच्छा है ? है भी या नही ? मै भी आप में से ही हूँ जो कभी कभी यु ही बैठे बैठे ऐसे कई प्रश्नों के जवाब ढूँढती रहती हूँ ..शायाद कही मिल जाये|

पहले जब पिता की तनख्वाह थोड़ी होती थी तब भी वो यही कोशिश करता था की वो अपने परिवार के लिए ज्यादा से ज्यादा कर सके  और आज ज्यादा पाने वालो की भी वह हालत है, कल भी माँ-बाप यही कहते थे की मेरा बच्चा कुछ बन जाये आज भी यही कहते है कि अपने बच्चो को कुछ बनाना है  बस अंतर यही रह गया है कि कल असुविधाओं में रहने वाले भी यही कहते थे आज हर सुविधा उठाने वाले भी यही कहते है | जबकि पहले इंसान घर में या बाहर काम करके भी थोड़े सुकून से रहता था आज हरवक्त मारा-मारी है भागम-भाग है, competetion जो बढ़ गया है |

घर संभालने वाली घरनी जब बाहर रहे तो घर तो भूतो का डेरा हो ही जायेगा , मै नारी के विरोध में नही हूँ बस उसकी उपस्थिति और अनुपस्थिती  को अपनी समझ के अनुसार समझाने का प्रयत्न कर रही हूँ | दोस्तों आप भी देख रहे होंगे कि जिस घर में औरत अपना समय नही दे पाती वहा तरह तरह की परेशानिया उत्पन्न हो जाती है , पति पत्नी के झगड़े और बच्चो में बढ़ते अकेलेपन और बेपरवाही  की मुख्य वजह माँ और पत्नी का समय पर समय ना दे पाना होता है ,समाज में भी बढ़ती पारिवारिक घटनाओं के लिए मेरी समझ से कुछ हद तक ये  जिम्मेदार है परन्तु वो भी क्या करें घर तो चलाना है , महंगाई के इस दौर में जब किसी की भी सैलरी पूरी नही पड़ती अगर वो निकल कर हाथ ना बटाए तो गुजारा ना हो | और फिर औरत के आत्मसम्मान के लिए भी आज उसका कामकाजी होना अनिवार्य हो गया है तो क्या कोई और राह नही है जिसमे इन सभी मुश्किलों का हल हो, घर का खर्च भी चल जाये , नारी का अपना सम्मान भी बना रहे और वो अपने बच्चे  और पति को समय भी दे सके ? शायद है या शायद नही …ये हमारे अपने नजरिये पर निर्भर करता है और हमारी प्राथमिकताओं पर भी | हमारी प्राथमिकता क्या है ये भी हमारा ही नजरिया बतलाता है |

दोस्तों मेरा मानना है की हमारी लाइफ में होने वाली इन सभी बातो के लिए केवल एक चीज सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ,और वो है हमारी खुद के मन कि इच्छा, लालच, और अधिक पाने कि चाहत , कम में संतोष न कर पाना | मेरी ये बाते कभी कभी मुझे भी कुछ ज्यादा ही आदर्शवादी लगती है लेकिन दोस्तों एक बात तो सच है कि लाइफ में होने वाली 75% से भी ज्यादा परेसानिया अपनी चाहत , इच्छाओं को कम करके कम किया जा सकता है | हम चाहे जितना भागे  कोई भी चीज , कितने भी पैसे हो थोड़े कम तो पड़ ही जाते है , न जरूरते पूरी हो पाती है न ही सुकून मिलता है , तरह तरह कि टेंसन, बिमारिया घेर लेती है | भाग दौड़ की इस जिंदगी में सब कुछ भागता ही जा रहा है, समय तो अपने ही तरह चल रहा है लेकिन कम पड़ जाता है, पैसे कमाने या जरूरते पूरी करने के लिए ही नही ….अपने अपनों, बच्चो ,पति / पत्नी के लिए भी , अपने रिश्तों के लिए भी समय निकालना उतना ही जरुरी है …

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